Thursday, 7 April 2016

" प्रकर्ति का उधार "

क्या आप किसी दुकान पे जाके कोई चीज़ लेते है तो मुफ्त में मिल जाती है ?
क्या मुफ्त में आप किसी के लिए नौकरी करते है ?
मेरा मानना है आपका उत्तर होगा , नहीं , तो जो चीज़ आपको मुफ्त में मिल रही है प्रकर्ति द्वारा उसका आपको 
कुछ मोल नहीं देना चाहिए ?
आपके दिन की शुरुआत जल से होती है , जो की मुफ्त में मिल रहा , आपको लगता है जितना जल आप प्रयोग करते है उतना  
आप बिल दे रहे , लेकिन क्या जल उत्पन्न हो रहा उस पैसे से , या जल बच रहा उस पैसे से , दिन भर सांस लेते है पेड़ों की बदौलत , उसे लौटना तो 
भूल ही जाइए बस में नहीं आपके , जो चाय आप पीते है वो दूध से बनी है , आपको लगता है 500  , 1000 रुपए का बिल दूध का दे दिया बात खत्म , 
क्या वो 1000  गाय तक पहुंच रहे हे किसी माध्यम से , या उसके पालन में 1000  पुरे रूपये लग रहे ?
किसी दिन सूरज कह दे मैं आज नहीं निकलूंगा , या पेड़ कह दे आज ऑक्सीजन नहीं देंगे , 
तो आप कल्पना करे क्या हो जायेगा , जो चीज़ जिस आसानी से मिल रही है उसके प्रति कृतज्ञ होकर अपना कर्तव्य निभाए और उसे 
लौटाए जो उसका हक़ है 
तो आप कहेंगे क्या करे  ?
आप जितना कर सकते है उतना करे , वो भी काफी नहीं होगा लेकिन करे ,
भाव महत्वपूर्ण है , जब आप गाय को देखे , या आसमान को , या जल को , या पेड़ को , या सांस तक भी ले तो याद रखे 
ये सब उधार चल रहा है जो आपको किसी ना किसी युग के किसी ना किसी जन्म में प्रकर्ति को लौटना है , 
और नहीं लौटाया , तो वो खुद ले लेगी ,

अंत में  मेरा आपसे आग्रह है की एक दिन ज़मीन की जगह हवा में चले , और साँस ना ले , और दूध से बनी कोई चीज़ ना खाये या पिए , 
और भोजन ना करे ,और जल न पिए ,  ऐसा अगर आप एक दिन कर दे तो आपको मेरा प्रणाम। 
©
- तनोज दाधीच