Friday, 3 June 2016

" स्थिरता "

" स्थिरता "

स्थिर कहना जितना आसान है , होना उतना ही मुश्किल। 
दिन भर में सोने के अलावा आप कभी भी स्थिर नहीं होते , एक जगह नहीं रुकते ,
दिनचर्या की भागदौड़ हो या सारा काम करके घर लौटने के बाद का समय आप सोचते है की आप एक जगह 
बैठे है कुछ नहीं कर रहे , लेकिन आप निरन्तर कुछ ना कुछ कर रहे होते है , कभी गौर करके देखिएगा। 

मैं दिमाग ,  मन , विचार उनकी तो बात ही नहीं कर रहा हूँ , वो तो ( बड़ी ) बात है ,
मैं तो आपके शरीर की बात कर रहा हूँ जिसके बारे में आपको मुगालता है की उसे आप चला रहे है ,
रात में भी  आपको नींद नहीं आती , आप हाथ-पैर हिलाते रहते है , करवट बदलते रहते है , लेकिन स्थिर 
नहीं होते , वो तो अचानक कोई नींद की झपकी आपसे आपका निरन्तर हिलना छीन के आपको 
तौफे में स्थिरता दे देती है जिसकी बदौलत आप अगले दिन ऊर्जा से काम करते है ,
अब ज़रा सोचिये नींद में बेहोशी की हालत की स्थिरता आपको इतनी ऊर्जा देती है तो 
होश में कभी आप स्थिर हो गए तो केसा अनुभव होगा। 

एक बार शरीर को स्थिर करने की कोशीश करना कभी ,एकदम स्थिर  , हल्का सा भी ना हिले , और फिर रुकना 
देखना कितनी देर आपका आत्मबल आपको रोक सकता है हिलने से , आप चौंक जायेंगे की कुछ ही सेकंड 
आप रुक पाये , जिस दिन 1  मिनट रुक जायेंगे तो आप कुछ अलग अनुभव करेंगे , इसी तरह समय 
बढ़ाए और शरीर को स्थिर करने की कोशिश करे , ये कृत्य आपके जीवन को ऊर्जा से भर देगा और 
आप अध्भुत महसूस करेंगे । 

©
- तनोज दाधीच