Wednesday, 30 September 2015

वो पूछते है मुझे कैसी लड़की चाहिए

वो पूछते है मुझे कैसी लड़की चाहिए 

सूरज के समान तेज़ हो , चाँद जैसी शीतलता ,
हर वक़्त जिसका चेहरा हो तारो जैसा चमकता,
चन्दन की खुशबू समान बदन जिसका महकता,
देख जिसे हर आदमी महफ़िल में बहकता ,

वो पूछते है मुझे कैसी लड़की चाहिए 

उसका व्यहवार , बोल चाल , ठीक ठाक होना चाहिए ,
सगे समन्धी , घर बार , सबको उसपे नाज़ होना चाहिए ,
संस्कारों में सीता हो , समर्पण में राधा हो ,
गीत गाये तो कंठ में मीरा गान होना चाहिए ,

वो पूछते है मुझे कैसी लड़की चाहिए 

आँखे ऐसी हो जैसे उनमे ईश्वर समाया हो ,
होठ ऐसे जैसे कोई गुलाब खिल आया हो, 
हर वक़्त जिसके होने से रोशन हो समां ,
सादगी से जिसने बच्चो को पढ़ाया हो ,

वो पूछते है मुझे कैसी लड़की चाहिए 

अपनी मुस्कराहट से जिसने हर दर्द मिटाया हो ,
मोहब्बत का असली मतलब जिसने समझाया हो,
भले ना करती हो एक भी काम घर में ,
लेकिन मैं जाऊ मिलने तो खाना उसने बनाया हो,

वो पूछते है मुझे कैसी लड़की चाहिए 

खा गए ना तुम भी धोखा जैसे सब खाते है ,
अब तक कविता कही , अब आत्मा से मिलाते है ,
ये सब जो कहा वो झूठ था, सच अब बताते है,
आखिर कैसी लड़की हम जीवन में चाहते है ,

वो पूछते है मुझे कैसी लड़की चाहिए 

जब दुनिया मेरे खिलाफ हो ,हाथो में उसका हाथ हो ,
जिसकी ख़ामोशी में भी कोई ना कोई बात हो ,
नहीं चाहिए सूरज, चाँद, सितारे, मुझे,
जब भीड़ में अकेला हो जाऊ , बस वो मेरे साथ हो ,

सरलता जिसका गहना हो ,
कंगन जिसने पहना हो ,
जन्नत लगे , कश्मीर लगे ,
जब भी उसके साथ रहना हो ,

कहे वो मुझसे, किस बात की चिंता है तुम्हें ,
कोई इस संसार में जुदा नहीं करेगा हमें ,
बस एक पल के लिए भी जब आँखों से ओझल जो जाये ,
मेरा जीना उस पल दुश्वार हो जाये ,


माँ की सेवा करे , घर का काम करे ,
ऐसा प्यार करे जैसा सीता से राम करे ,
ला सकते हो ऐसी कन्या क्या तुम दोस्त ,
किसी का दिल ना दुखाये, सबका सम्मान करे ,

जानता हूँ मुश्किल है ,ऐसी लड़की ढूँढना ,
जैसे हो दिया लेके , खोया सपना ढूँढना,
पर दिल कहता है रोज़, एक दिन वो खुद आएगी ,
जिस दिन बंद करदोगे ,'तनोज' तुम ढूँढना ,

तो ऐसी लड़की चाहिए मुझे 


- तनोज दाधीच 

Monday, 28 September 2015

अकेलेपन का अध्भुत आनंद

अकेलेपन का अध्भुत आनंद 


आईने में पचास बार जाके बाल बनाना हो या संगीत को सुन के उसके साथ गाना , मौन होकर कुछ ना बोलना हो या 
दूर दूर तक की आवाज़ को बहुत आसानी से सुन लेना ,अकेलेपन का जो असीम अनुभव है वो कभी भी भीड़ में या लोगो के 
बीच रहकर नहीं आ सकता ,
एकांत में जब आप भेठेंगे तो आपका ध्यान उन चीज़ो पे जायेगा जिन्हें आप दिनचर्या की वजह से नज़रअंदाज़ कर देते है ,
जैसे पार्क में खेलते छोटे बच्चो की मुस्कुराहट 
बूढ़े जोड़े को साथ में देख कर उनके सुकून को आप खुद जी पाएंगे ,
पेड़ , पोधे ,परिंदे ,सूरज , चाँद , सितारे , हवाए , प्रकर्ति से खूबसूरत इस दुनिया में कुछ नहीं और आप पाएंगे की जो आपके सामने था उसपर 
ही ध्यान नहीं दिया और जीवन हाथ से फिसल गया ,

कवितायेँ हो या लेख कुछ भी पड़ने के लिए आपको एक एकांत की ज़रूरत है वरना लेखक ने जिस ऊर्जा और कलेजा लगा के लिखा है उस तक
आप नहीं पहुँच पाएंगे ,

ज़िन्दगी में कईं बार ऐसा मौका आता है जब आपको दो में से एक रास्ता चुनना होता है , तब आप भले किसी बड़े से बड़े 
व्यक्ति से राय ले लें , लेकिन जवाब आपके दिल में पहले से मौजूद होता हे की आपको कौनसा रास्ता चुनना है , आपने कभी ध्यान कैसे नहीं 
दिया की वो जवाब कैसे आया , कहाँ से आया , अंदर से ? तो फिर सारे जवाब अंदर ही होंगे , बस कुछ पल एकांत में बस कुछ पल और आप उस शख्स से जो आप ही है मिल लेंगे जो आपके अंदर बरसो से मौजूद है ,

इश्क़ में बहुत बार आप अकेले हो सकते है , कभी कभी तो अपने प्रियतम के साथ भी , लेकिन मुद्दा ये हे की क्या आपका ध्यान उस अकेलेपन पे है ?
हम में से हज़ारो लोग हर दिन कुछ पल के लिए अकेले होते है लेकिन हम खुद को व्यस्त करने का सोचते है, उस समय अगर हम उस समय को जी ले 
भले पांच मिनट आप पाएंगे तेईस गंटे पचपन मिनट में जो ना हुआ , वो उस पांच मिनट में घट जायेगा ,

आध्यात्मिक हो या भौतिकवाद हर दिशा में अकेलापन वो मदद करता है जो ईश्वर करता है ,
आप बस एक बार अकेले हो कर देख लें , फिर आप वो महसूस करेंगे जो आप बार बार करना चाहेंगे , क्युकी तब आप 
उससे मिल पाएंगे जो हर पल आपके साथ है लेकिन आपका ध्यान नहीं उसपे , आपकी आत्मा , आपकी चेतना , आपका ईश्वर ।

- तनोज दाधीच 

Saturday, 26 September 2015

उसका फ़ोन आया.......

रोज़ की तरह सुबह उठ के उसके ख्याल को नज़रअंदाज़ कर दिया , और अपने काम में लग गया , कुछ नया नहीं , सब रोज़ जैसा लेकिन ईश्वर ने कुछ और सोच के रखा था , 
मैं रोज़ सुबह ठीक 9 बजे नहाने चला जाता हूँ लेकिन आज रविवार था तो में भेठ के ग़ज़लें लिखने लगा और फ़ोन में उसकी तस्वीर खोल ली ,
बस फिर क्या था लफ्ज़ अपने आप आने लगे , शेर अपने आप बनने लगे , इतने में फ़ोन की घंटी बजी , उसकी तस्वीर बरक़रार थी , लेकिन घंटी बज रही थी,

कुछ समझ नहीं आ रहा था , ये फ़ोन खराब हो गया है , सुबह खुली आँखों से सपने दिखा रहा है इससे अच्छा नहा लेता , 

गुस्से में कलम फेंकी और नहाने जाने लगा , लेकिन मोबाइल बजने का स्वर मेरे कानो में निरंतर खुदा की आवाज़ की तरह पड़ रहा था ,
मैंने अपनी सिमित बुद्धि पे ज़ोर लगाया और ध्यान से देखा तो सच में उसका फ़ोन था ,

इस पल को मैं बयान इसलिए नहीं कर सकता क्युकी शब्दों में वो बयान हो भी नहीं सकता , मेरी आँखों में आंसू थे जिसे कुछ लोग पानी कहते है , हाथ कांप रहे थे , और फ़ोन तक जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी ,

जैसे ही मैंने पलके झपकायी सीधे कुछ सालो पहले का वो पल मेरी आँखों के सामने आ गया जब उसने कहा था , आज के बाद न मिलेंगे , ना बात करेंगे , मेरी कसम है कोशिश मत करना मुझ से संपर्क करने की ,
ये कसम भी अजीब होती है  खाते सब है , मरता कोई नहीं 
खेर हमेशा की तरह मैंने बात मान ली थी और अपनी दुनिया से दूर होकर खुद की एक दुनिया बना ली थी ,
शायरी , ग़ज़लें , लेख , कुछ श्रोता ,तनहाई और मेरा अकेलापन 
और सपनो में जीने लगा था , 
लेकिन आज सपना नहीं था , टूट गया था, में जाग गया था , ये वासत्विकता थी ,

जैसे तैसे शरीर और आत्मा की पूरी शक्ति लगा कर मैंने फ़ोन का हरा बटन दबाया ,

उस तरफ से कुछ आवाज़ नहीं आई , लेकिन महसूस कर लिया मैंने , अनुभव में जो था ,
मैंने कहा - हे हे हेलो 
- हेलो कैसे हो ?
- मैं ठीक तो सालो से नहीं था , लेकिन ठीक ही कह दिया , ,मैं ठीक हूँ 
और तुम 
-मैं भी ठीक हूँ , तुम्हारी शायरी कैसी चल रही है , अब भी वैसा है टुटा फूटा लिखते हो या कुछ सुधार हुआ ?
- ईश्वर के मन में ना जाने क्या सूझी मेरे होठो से ये निकल गया तुम्हारे जाने से मेरी शायरी अच्छी हो गयी है ,
लम्बी शांति कोई जवाब नहीं ,
- मैंने कहा , आज कैसे इस शायर की याद आ गयी ,
सालो बाद फ़ोन पर दबी आवाज़ और कपकपाते होठो से ये सुनके की ' मैंने गलती करदी ' लगा की शायद सालो अकेले रहने के बाद 
अब वो पल आ गया जिसके लिए सालो तक किसी से दिल लगाने का सोचा भी नहीं , इतने में ही पीछे से आवाज़ आई बहु मंगलसूत्र ठीक करो,
-जी माँ जी और फिर ये सुनके अपनी तन्हाई और प्रतृगया के साथ आगे बढ़ने के लिए मैंने खुद ही फ़ोन काट दिया ........




Wednesday, 9 September 2015

मेरी बालकनी के कबूतर

मेरी बालकनी के कबूतर
खुद की ही बनायीं हुई दिनचर्या से जब मैं थक जाता हूँ या थकने का बहाना बनाता हूँ , तो मैं अपनी बालकनी में कुर्सी लगा कर भेठ जाता हूँ ,
जहाँ रोज़ मेरी मुलाकात मेरे सबसे प्यारे , घनिष्ट , अनन्य दोस्तों से होती है ,मेरी बालकनी के कबूतर ................
वो 6 है या 7 या 8 मुझे नहीं पता , लेकिन कैसे है ये मुझसे बेहतर कोई नहीं जनता , हर सुबह उन्हें देखने से शुरू होती है और हर दिन बालकनी का दरवाजा लगाते समय शुभरात्रि कहके सोने से खत्म होता है …
कभी मैं उनको अपनी ग़ज़लें सुनाता हूँ कभी वो मुझे उनके गीत सुनाते है ,
उनमे  से 2 एक ही जगह पे अपना घर बना कर टिके है , नए कबूतरों के सृजन के लिए और बाकी कबूतर उड़ते रहते है , कभी पेड़ पे , कभी बालकनी में ही , तो कभी हवाओं  से हाल पूछ आते है ..........
2 कबूतर ऐसे है जो कमरे में रखी टेबल के नीचे घर बनाने के लिए निरंतर प्रयास करते है , दिन भर , लकडियो को जमा करते है एक एक करके ,
और जब वो अंदर लकड़ी ला रहे होते है और मैं उन्हें देख लूँ तो इतने सीधे बन जाते है जितना सीधा वो लड़का भी नहीं बनता जिसे लड़की अपने माता पिता से मिलवाने लायी है ,
मुझे नज़रअंदाज़ करके , जैसे देखा भी ना हो , चुप चाप वापिस मूड जाते है ,
कुछ ऐसे ही है मेरे दोस्त।
कभी कभी पुरे घर का चक्कर लगा लेंगे तो कभी मेरे डाले हुए चावल भी नहीं खाएंगे ……
वे इतने सुन्दर है की उन्हें देखने के बाद किसी को देखने का मन नहीं करता , रंगो से भरा मुलायम कंठ , फड़फड़ाते पंख , और प्रेम करने के इच्छा , उनका सोंद्रय वर्णन करना बहुत ही मुश्किल है ,
वो मेरे अकेलेपन के साथी है , मेरी सफलताओ के साक्षी है , मेरी शायरी के श्रोता है , मेरी कहानी के किरदार है , मेरे दोस्त है ,
मेरे सबसे प्यारे दोस्त
मेरी बालकनी के कबूतर ............................ 

Sunday, 6 September 2015

भगवान

भगवान् क्या हे 
कुछ कहते हे ईशवर हे कुछ अल्लाह कुछ जीसस तो कोई कुछ और 
कोई कहता हे मंदिर में हे कोई मस्ज़िद में कोई कहा तो कोई कहा 
कोई तो कहता हे आसमान में हे कोई धरा में बताता हे 
कोई कहता हे हर चीज़ में हे

कोई कहता हे हम सब में हे 
महावीर ने कहा परमात्मा नहीं हे तो

बुद्धा ने कहा परमात्मा तो नहीं हे पर आत्मा भी नहीं हे

भगवान् क्या हे


जब किसी कि जान बचती हे तो वो कहता हे भगवान् बचा लिया 
जब कोई प्यारा हादसे का शिकार होता हे तो कहते हे भगवान् तूने क्या

किया 
क्या भगवान् वही हे जो सुनामी के रूप में लोगो कि जाने लेता हे
क्या भगवान् वही हे जो बारिश के रूप में किसानो कि मदद करता हे 
क्या भगवान् बहुत सारे हे 

या भगवान् एक ही हे
या भगवान् हे ही नहीं
तो कौन हे जो इस पुरे ब्रह्माण्ड को चला रहा हे 
भगवान् क्या हे 
हिन्दू होने के नाते मुझे ये बताया गया कि ३३ करोड़ देवी देवता हे 
अब में किसी से मिला नहीं पर मेने मान लिया
जो भगवान् करते थे सही हे
जो इंसान करे उसे तोला जाता हे इन्साफ के तराज़ू में भले वो २ शादिया

हो या युद्ध 
और भी बाते बतायी गयी जिन्हे मान लेना मेरा काम था
भगवान् को किसने पाया केसे पाया ये कौन बताएगा
क्या शास्त्र पड़ने से ईश्वर मिलेगा
क्या भजन करने से मिलेगा
और मिलके करना क्या हे इंसान बने हे तो इंसान से ही क्यों न मिले उसी प्यार से जिस प्यार से ईश्वर से मिलने कि चाह हे भगवान् क्या हे अंत में क्या लिखू क्या भगवान् वो नहीं जो दुसरो कि मदद करता हे क्या भगवान् वो नहीं जो अपना खाना भी गरीबो में बाँट देता हे क्या भगवान् होने के लिए शक्तियो कि ज़रूरत हे या इंसान होने के लिए इंसानियत कि ये सवाल घूमता रहता हे खेर भगवान् सबका भला करे।