मेरी बालकनी के कबूतर
मेरी बालकनी के कबूतर
खुद की ही बनायीं हुई दिनचर्या से जब मैं थक जाता हूँ या थकने का बहाना बनाता हूँ , तो मैं अपनी बालकनी में कुर्सी लगा कर भेठ जाता हूँ ,
जहाँ रोज़ मेरी मुलाकात मेरे सबसे प्यारे , घनिष्ट , अनन्य दोस्तों से होती है ,मेरी बालकनी के कबूतर ................
वो 6 है या 7 या 8 मुझे नहीं पता , लेकिन कैसे है ये मुझसे बेहतर कोई नहीं जनता , हर सुबह उन्हें देखने से शुरू होती है और हर दिन बालकनी का दरवाजा लगाते समय शुभरात्रि कहके सोने से खत्म होता है …
कभी मैं उनको अपनी ग़ज़लें सुनाता हूँ कभी वो मुझे उनके गीत सुनाते है ,
उनमे से 2 एक ही जगह पे अपना घर बना कर टिके है , नए कबूतरों के सृजन के लिए और बाकी कबूतर उड़ते रहते है , कभी पेड़ पे , कभी बालकनी में ही , तो कभी हवाओं से हाल पूछ आते है ..........
2 कबूतर ऐसे है जो कमरे में रखी टेबल के नीचे घर बनाने के लिए निरंतर प्रयास करते है , दिन भर , लकडियो को जमा करते है एक एक करके ,
और जब वो अंदर लकड़ी ला रहे होते है और मैं उन्हें देख लूँ तो इतने सीधे बन जाते है जितना सीधा वो लड़का भी नहीं बनता जिसे लड़की अपने माता पिता से मिलवाने लायी है ,
मुझे नज़रअंदाज़ करके , जैसे देखा भी ना हो , चुप चाप वापिस मूड जाते है ,
कुछ ऐसे ही है मेरे दोस्त।
कभी कभी पुरे घर का चक्कर लगा लेंगे तो कभी मेरे डाले हुए चावल भी नहीं खाएंगे ……
वे इतने सुन्दर है की उन्हें देखने के बाद किसी को देखने का मन नहीं करता , रंगो से भरा मुलायम कंठ , फड़फड़ाते पंख , और प्रेम करने के इच्छा , उनका सोंद्रय वर्णन करना बहुत ही मुश्किल है ,
वो मेरे अकेलेपन के साथी है , मेरी सफलताओ के साक्षी है , मेरी शायरी के श्रोता है , मेरी कहानी के किरदार है , मेरे दोस्त है ,
मेरे सबसे प्यारे दोस्त
मेरी बालकनी के कबूतर ............................
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बहुत खूब 👌
ReplyDeleteसात्विक कथन
ReplyDeleteNice :)
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