Saturday, 26 September 2015

उसका फ़ोन आया.......

रोज़ की तरह सुबह उठ के उसके ख्याल को नज़रअंदाज़ कर दिया , और अपने काम में लग गया , कुछ नया नहीं , सब रोज़ जैसा लेकिन ईश्वर ने कुछ और सोच के रखा था , 
मैं रोज़ सुबह ठीक 9 बजे नहाने चला जाता हूँ लेकिन आज रविवार था तो में भेठ के ग़ज़लें लिखने लगा और फ़ोन में उसकी तस्वीर खोल ली ,
बस फिर क्या था लफ्ज़ अपने आप आने लगे , शेर अपने आप बनने लगे , इतने में फ़ोन की घंटी बजी , उसकी तस्वीर बरक़रार थी , लेकिन घंटी बज रही थी,

कुछ समझ नहीं आ रहा था , ये फ़ोन खराब हो गया है , सुबह खुली आँखों से सपने दिखा रहा है इससे अच्छा नहा लेता , 

गुस्से में कलम फेंकी और नहाने जाने लगा , लेकिन मोबाइल बजने का स्वर मेरे कानो में निरंतर खुदा की आवाज़ की तरह पड़ रहा था ,
मैंने अपनी सिमित बुद्धि पे ज़ोर लगाया और ध्यान से देखा तो सच में उसका फ़ोन था ,

इस पल को मैं बयान इसलिए नहीं कर सकता क्युकी शब्दों में वो बयान हो भी नहीं सकता , मेरी आँखों में आंसू थे जिसे कुछ लोग पानी कहते है , हाथ कांप रहे थे , और फ़ोन तक जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी ,

जैसे ही मैंने पलके झपकायी सीधे कुछ सालो पहले का वो पल मेरी आँखों के सामने आ गया जब उसने कहा था , आज के बाद न मिलेंगे , ना बात करेंगे , मेरी कसम है कोशिश मत करना मुझ से संपर्क करने की ,
ये कसम भी अजीब होती है  खाते सब है , मरता कोई नहीं 
खेर हमेशा की तरह मैंने बात मान ली थी और अपनी दुनिया से दूर होकर खुद की एक दुनिया बना ली थी ,
शायरी , ग़ज़लें , लेख , कुछ श्रोता ,तनहाई और मेरा अकेलापन 
और सपनो में जीने लगा था , 
लेकिन आज सपना नहीं था , टूट गया था, में जाग गया था , ये वासत्विकता थी ,

जैसे तैसे शरीर और आत्मा की पूरी शक्ति लगा कर मैंने फ़ोन का हरा बटन दबाया ,

उस तरफ से कुछ आवाज़ नहीं आई , लेकिन महसूस कर लिया मैंने , अनुभव में जो था ,
मैंने कहा - हे हे हेलो 
- हेलो कैसे हो ?
- मैं ठीक तो सालो से नहीं था , लेकिन ठीक ही कह दिया , ,मैं ठीक हूँ 
और तुम 
-मैं भी ठीक हूँ , तुम्हारी शायरी कैसी चल रही है , अब भी वैसा है टुटा फूटा लिखते हो या कुछ सुधार हुआ ?
- ईश्वर के मन में ना जाने क्या सूझी मेरे होठो से ये निकल गया तुम्हारे जाने से मेरी शायरी अच्छी हो गयी है ,
लम्बी शांति कोई जवाब नहीं ,
- मैंने कहा , आज कैसे इस शायर की याद आ गयी ,
सालो बाद फ़ोन पर दबी आवाज़ और कपकपाते होठो से ये सुनके की ' मैंने गलती करदी ' लगा की शायद सालो अकेले रहने के बाद 
अब वो पल आ गया जिसके लिए सालो तक किसी से दिल लगाने का सोचा भी नहीं , इतने में ही पीछे से आवाज़ आई बहु मंगलसूत्र ठीक करो,
-जी माँ जी और फिर ये सुनके अपनी तन्हाई और प्रतृगया के साथ आगे बढ़ने के लिए मैंने खुद ही फ़ोन काट दिया ........




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