जब मेरे एक मित्र ने इस विषय पर लिखने की राय दी उस समय जिस गीत के स्वर मेरे कानो में गूंज रहे थे
वो था छूकर मेरे मन को , किया तूने क्या इशारा ,
मेरा ऐसा मानना है की मन को अगर कोई इंसान या वस्तु छू ले तो उसे प्राप्त करने के लिए मन आतुर हो जाता है ,
बचपन में एक मुहावरा मेरी माँ से मैंने कहीं बार सुना है ' सुनो सब की, करो मन की ' ,
तो फिर सुनो क्यों ?
ये सवाल आप से पूछ रहा हूँ माँ से नहीं पूछा वरना आप जानते हो क्या होता ,
लोग कहते है मन बहुत चंचल होता है , मैं कहता हूँ मन दिमाग की तरह चालाक होता है ,
इंसान को लगता है वो मन को चला रहा है , वास्तविकता में मन उसे चला रहा होता है ,
मन के बारे में लिखना भी मन के विचार की ही उपज है ,
मन में एक विचार से लेकर के पूरा ब्रह्माण्ड समाया है ,
पता नहीं मैं इस विषय को निभा पाया या नहीं लेकिन मन में जो आया वह लिखना ज़रूरी है ,
दिमाग लगा के मन के बारे में लिखा तो क्या लिखा ,
मोहब्बत , अहंकार , लड़ाई , ईर्षा , सब मन के किसी कोने में छिपा है ,
जिस मन का कोई आकार , कोई पता नहीं , उस में इतनी चीज़े है जितनी दिमाग में नहीं ,
जब किसी व्यक्ति या निर्जीव वस्तु से हम जीवन में मिलते है तो उसके बारे में सारी बाते
मन में चली जाती है , दिमाग आगे का जीवन जीने के लिए भूल जाता है लेकिन मन सब याद रखता है ,
इसलिए कभी कभी किसी का चेहरा देख के लगता है इसे कहीं देखा है , मन उसे अनायास खोजने लगता है ,
जब मन के किसी कोने में मिल जाता है वो शख्स तो दिमाग को सन्देश भेज देता है की इससे यहाँ मिले थे ,
और हमें पता चल जाता है
जब मन मोहब्बत करता है तो मन ही उसे समझ सकता है ,
हिंदी के एक बड़े कवि है कुमार विश्वास जी उनके एक बहुत पुराने गीत की एक पंक्ति के साथ
अंत करना चाहूंगा वो कहते है
' मन तुम्हारा
हो गया तो,
हो गया '
- तनोज दाधीच
विषय के लिए तनुज का खास शुक्रिया ......
वो था छूकर मेरे मन को , किया तूने क्या इशारा ,
मेरा ऐसा मानना है की मन को अगर कोई इंसान या वस्तु छू ले तो उसे प्राप्त करने के लिए मन आतुर हो जाता है ,
बचपन में एक मुहावरा मेरी माँ से मैंने कहीं बार सुना है ' सुनो सब की, करो मन की ' ,
तो फिर सुनो क्यों ?
ये सवाल आप से पूछ रहा हूँ माँ से नहीं पूछा वरना आप जानते हो क्या होता ,
लोग कहते है मन बहुत चंचल होता है , मैं कहता हूँ मन दिमाग की तरह चालाक होता है ,
इंसान को लगता है वो मन को चला रहा है , वास्तविकता में मन उसे चला रहा होता है ,
मन के बारे में लिखना भी मन के विचार की ही उपज है ,
मन में एक विचार से लेकर के पूरा ब्रह्माण्ड समाया है ,
पता नहीं मैं इस विषय को निभा पाया या नहीं लेकिन मन में जो आया वह लिखना ज़रूरी है ,
दिमाग लगा के मन के बारे में लिखा तो क्या लिखा ,
मोहब्बत , अहंकार , लड़ाई , ईर्षा , सब मन के किसी कोने में छिपा है ,
जिस मन का कोई आकार , कोई पता नहीं , उस में इतनी चीज़े है जितनी दिमाग में नहीं ,
जब किसी व्यक्ति या निर्जीव वस्तु से हम जीवन में मिलते है तो उसके बारे में सारी बाते
मन में चली जाती है , दिमाग आगे का जीवन जीने के लिए भूल जाता है लेकिन मन सब याद रखता है ,
इसलिए कभी कभी किसी का चेहरा देख के लगता है इसे कहीं देखा है , मन उसे अनायास खोजने लगता है ,
जब मन के किसी कोने में मिल जाता है वो शख्स तो दिमाग को सन्देश भेज देता है की इससे यहाँ मिले थे ,
और हमें पता चल जाता है
जब मन मोहब्बत करता है तो मन ही उसे समझ सकता है ,
हिंदी के एक बड़े कवि है कुमार विश्वास जी उनके एक बहुत पुराने गीत की एक पंक्ति के साथ
अंत करना चाहूंगा वो कहते है
' मन तुम्हारा
हो गया तो,
हो गया '
- तनोज दाधीच
विषय के लिए तनुज का खास शुक्रिया ......
मन में एक विचार से लेकर के पूरा ब्रह्माण्ड समाया है ,
ReplyDeleteSuprb 👌