जिसे आम आदमी पानी कहता है , उसे कवि जल कहेगा , या आँसू , या भावनाओं की धारा , या
प्रकर्ति की सुंदरता , या पेड़ पोधो का भोजन या जो उसका मन चाहे ,
कवि के विचार आम आदमी से भिन्न होते है , शायर या तो मोहब्बत होने से बनता है या मोहब्बत टूटने
से या दोनों से ऐसा आज के संसार में लोग मानते है लेकिन अगर आपके मन में हर इंसान , पूरी प्रकर्ति
और इस संसार में मौजूद हर चीज़ को वास्तविक रूप से देखने की क्षमता नहीं है , तो आप शायर या लेखक नही
बन सकते ,
एक उस्ताद शायर को मैंने एक दिन सुधार के लिए अपना एक शेर सुनाया की
भले एक रात की रौशनी मिटा दे वो लेकिन ,
कोई चिराग कभी सूरज हो नहीं सकता ,
इसे सुनते ही वो मौन हो गए, कुछ बोले ही नहीं , क़रीबन 20 मिनट बाद मैं उनके पैर छू कर और इस ख़ामोशी को जी
कर अपने घर लौट गया , रास्ते भर यही सोचा की क्या गलती होगी शेर में जो गुरूजी ने कुछ नहीं कहा ,
3 दिन बाद वो मुझसे बाज़ार में चाय की दुकान पर टकरा गए , मैं नज़र छुपा के भागने लगा उन्होंने रोका और कहा
वो चिराग की जगह दिया कर लो बाकी शेर अच्छा है , पहले तो समझ नहीं आया फिर ध्यान लगाया तो याद आया शेर में
सुधार कर रहे है,
मैंने भी वही पूछा जो आप लोग सोच रहे इतनी सी ही बात थी तो उस दिन मौन क्यों हो गए , उसी दिन बता देते ,
उन्होंने जो जवाब दिया वो सभी कवियों , शायरों की बुनियाद है ,
वो बोले तुम्हारे शेर से मिलता जुलता एक शेर मैंने 15 साल पहले कहा था , अब मुझे याद नहीं आ रहा था
तो मैं मौन होके उसे याद करने लगा
जब आपकी रचना इस दुनिया , हर व्यक्ति और पूरी प्रकृति से महत्वपूर्ण हो जाये तो समझ लीजिये कवि होने के पहली
परिभाषा आपने निभा दी ,
लेकिन ये तो तब जब कवि और उसकी कविता अलग अलग होती है , जब कवि और उसकी कविता एक हो जाती है तो
इस संसार को दिनकर , नागार्जुन , निराला , ग़ालिब , मीर जैसे हीरे मिलते है
- तनोज दाधीच
प्रकर्ति की सुंदरता , या पेड़ पोधो का भोजन या जो उसका मन चाहे ,
कवि के विचार आम आदमी से भिन्न होते है , शायर या तो मोहब्बत होने से बनता है या मोहब्बत टूटने
से या दोनों से ऐसा आज के संसार में लोग मानते है लेकिन अगर आपके मन में हर इंसान , पूरी प्रकर्ति
और इस संसार में मौजूद हर चीज़ को वास्तविक रूप से देखने की क्षमता नहीं है , तो आप शायर या लेखक नही
बन सकते ,
एक उस्ताद शायर को मैंने एक दिन सुधार के लिए अपना एक शेर सुनाया की
भले एक रात की रौशनी मिटा दे वो लेकिन ,
कोई चिराग कभी सूरज हो नहीं सकता ,
इसे सुनते ही वो मौन हो गए, कुछ बोले ही नहीं , क़रीबन 20 मिनट बाद मैं उनके पैर छू कर और इस ख़ामोशी को जी
कर अपने घर लौट गया , रास्ते भर यही सोचा की क्या गलती होगी शेर में जो गुरूजी ने कुछ नहीं कहा ,
3 दिन बाद वो मुझसे बाज़ार में चाय की दुकान पर टकरा गए , मैं नज़र छुपा के भागने लगा उन्होंने रोका और कहा
वो चिराग की जगह दिया कर लो बाकी शेर अच्छा है , पहले तो समझ नहीं आया फिर ध्यान लगाया तो याद आया शेर में
सुधार कर रहे है,
मैंने भी वही पूछा जो आप लोग सोच रहे इतनी सी ही बात थी तो उस दिन मौन क्यों हो गए , उसी दिन बता देते ,
उन्होंने जो जवाब दिया वो सभी कवियों , शायरों की बुनियाद है ,
वो बोले तुम्हारे शेर से मिलता जुलता एक शेर मैंने 15 साल पहले कहा था , अब मुझे याद नहीं आ रहा था
तो मैं मौन होके उसे याद करने लगा
जब आपकी रचना इस दुनिया , हर व्यक्ति और पूरी प्रकृति से महत्वपूर्ण हो जाये तो समझ लीजिये कवि होने के पहली
परिभाषा आपने निभा दी ,
लेकिन ये तो तब जब कवि और उसकी कविता अलग अलग होती है , जब कवि और उसकी कविता एक हो जाती है तो
इस संसार को दिनकर , नागार्जुन , निराला , ग़ालिब , मीर जैसे हीरे मिलते है
- तनोज दाधीच
Majaa la diya bhai tune
ReplyDeleteMajaa la diya bhai tune
ReplyDelete👍
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ReplyDeleteBahut sundar ��
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