Tuesday, 30 May 2017

पिता



पिता सूर्य के समान होते  है , हर रोज़ निकलते  है काम पर, अनगिनत लोगो को अपने प्रकाश 
से रोशन करते है , छुट्ठी की दरखास्त  भी नहीं लगाते अपितु वो तो सुबह से रात में सोने तक ,
अपने लिए नहीं बल्कि हमारे लिए जीते  है , उनकी खुद की कोई भी महत्वकांशा , कामना , या 
इच्छा नहीं है बस एक ही उद्देश्य है उनके जीवन का , वो है ( हमारी ख़ुशी ) , माँ का ध्यान रखना ,
हमसे कब प्रेम से और कब सख्त होकर बात करनी है ये ध्यान रखना , प्रोफेशनल और परसनल 
जीवन में एक संतुलन बनाने का ध्यान रखना , अपने सभी कर्तव्यों का निर्वाहन करते हुए जीवन 
में अपनों को खुशियाँ देने का ध्यान रखना , ये सब एक समय पर सिर्फ पिता ही कर सकते है । 

आज के दौर के युवा  ( मुझे मिलाकर ) इस बात से बिलकुल अनजान है की उनके पिता ने जीवन में
कितने संघर्ष किये है , कितनी रातें अँधेरे में काटी है , कितने दिन भूखे प्यासे रहे है , कितनी 
कठनाईयों का सामना किया है , हम इस बात से बिलकुल बेखबर है बल्कि हम सब तो भौतिकवाद 
की इस  दुनिया में इतने व्यस्त हो गए है की अगर पिता एक कमरे में हो तो हम दूसरे कमरे में जाकर
मोबाइल चलाने लगते है , ये हँसने का नहीं बल्कि गौर करने का विषय है , दिन भर में पाँच मिनट 
निकाल कर हम पिता के साथ नहीं बैठ सकते , ये बीमारी तेज़ी से बड़ रही है , हम तो फिर भी इससे 
बच सकते है लेकिन आने वाली पीढ़ी को अगर इस बीमारी ने जकड़ लिया तो इससे बाहर निकलना 
नामुमकिन होगा ।

मेरा आपसे निवेदन है की हर रोज़ पिता के लिए कुछ समय निकाले, हम उनके साथ कुछ साल और है, उनके पुरे जीवन का एहसान तो हम नहीं उतार सकते लेकिन हाँ उन्हें खुश ज़रूर कर सकते है उनसे बात करके , ये कुछ बातें है जो आपको मदद करेगी अपने पिता से संवाद शुरू करने में ,

1- उनके जीवन के संघर्षो के बारे में पूछे और कहे आप उनसे प्रेरणा लेना चाहते है ।   
2- हर रात्रि सोने से पहले उनके पैर दबाये और उस समय उनके दिन के बारे में पूछे कैसा रहा । 
3- अगर आपके पिता (cool) है तो आप उनसे उनकी जवानी के किस्सों के बारे में भी बात कर सकते है , लेकिन हाँ ध्यान रहे ( cool ) हो तो ही । 
4- उनके जन्मदिन पर उनके लिए गाना गाये , या कोई कविता लिखें और पढ़े ।

आप इन छोटी चीज़ो से देखेंगे की उनके चेहरे पर चमक आ गयी है और दिन भर की थकान को भूल कर वो मुस्कुरा रहे है , और अगर आप दूसरे शहर में रहते है तो हर दिन की शुरुआत पिता को फ़ोन करके उनसे आशीर्वाद लेकर करे । 
अंत में बस मैं ये कहना चाहता हुँ की पिता की सेवा करने से बड़ा इस धरती पर कोई पुण्य नहीं ।

धन्यवाद । 

- तनोज दाधीच
 

Saturday, 4 February 2017

वो तीसरा इंसान

हर मनुष्य के जीवन में माता और पिता के बाद कोई एक ऐसा इंसान होता है जो हर पल उसका साथ देता है , वो भाई-बहन हो सकता है, प्रेमी-प्रियसी हो सकता है,या कोई दोस्त या कोई रिश्तेदार , या कोई भी । वो इंसान हर पल आपके साथ होता है या तो प्रत्यक्ष या आपके दिल में , जिसके लिए आप ये कह सकते है कुछ भी हो जाये वो तो साथ है, ये इंसान आपको ( कभी ) धोखा नहीं देता , सारे लोग खिलाफ हो जाये लेकिन वो इंसान आपकी तरफ आपका हाथ थामे खड़ा रहता है । वो आपको हर तरह से मदद करता है , कभी आर्थिक तो कभी आपकी भावनाएँ समझ कर , वो इंसान आपके बिना बोले भी समझ जाता है की आपको किस चीज़ की ज़रूरत है । वो इंसान आपके सारे राज़ नहीं जानता लेकिन अपने सारे बता देता था ताकि आप अच्छा महसूस करें ।

मज़े की बात ये है की आज के दौर में कोई आपको पानी भी पिलाएगा तो सोचेगा मेरा स्वार्थ क्या है लेकिन वो इंसान आपके लिए खुशी खुशी जान भी दे देगा बिना कुछ माँगे , अपनी आत्मा के अंदर हम सब जानते है की वो इंसान कौन है हमारे जीवन में ,हमारी सबसे बड़ी मूर्खता ये है की हम उसी इंसान को सबसे ज़्यादा नज़रअंदाज़ करते है,और आखिर में वक़्त की ताकत से और प्रकर्ति के जादू से वो आपसे अलग हो जाता है , उसके अलग होने पर बिल्कुल वेसा लगता है जैसे आपकी आत्मा निकाल ली हो और कहा जाये की अब जियो ।

मेरा आपसे निवेदन है की आज उन्हें बताएँ की वो कितने महत्वपूर्ण है, और आपके जीवन में उन्होंने कहाँ कहाँ आपका साथ दिया , मेरी बात मानिए उनके लिए यही सबसे बड़ा तौफा होगा की आपको सब याद है ।

धन्यवाद ।

- तनोज दाधीच

Tuesday, 23 August 2016

कृष्णा

देवकी और वासुदेव के आठवे पुत्र होकर रोहिणी नक्षत्र में जन्मे इस बालक को देखकर कौन कह सकता था की वो इतना प्रभावशाली व्यक्तिव वाला होगा की युगों युगों तक हर लोक में उसी के चर्चे होंगे । कृष्णा सिर्फ एक नाम ,एक भगवान् , एक चरित्र , एक कहानी , एक राजा , एक प्रेमी , एक गुरु नही बल्कि पूरा ब्रह्माण्ड है। 
उनके बारे में लिखना बहुत मुश्किल  है। 
उनकी कुछ बाते जो मुझे बहुत अच्छी लगती है वो है ,

1 - कृष्णा समझने नहीं , अनुभव के लिए है ,कृष्णा को समझना नामुमकिन है , एक बार तो वे अर्जुन से लड़ लिए थे जिसे सच मान कर शिव जी उन्हें रोकने आये तो उन्होंने बताया की ये भी अर्जुन की एक परीक्षा है। 

2 - ये भी उनकी ही लीला है की महाभारत और गीता जैसे शास्त्रों में एक बार भी राधा जी का नाम नहीं आया लेकिन कृष्णा के साथ 
हमेशा उनका नाम लिया जाता है , भारत के अमूमन गावँ और कुछ शहरो में अब तक लोग हेल्लो या नमस्ते की जगह "राधे कृष्णा" कहते है। 

3 - जब संदीपनी गुरु ने अपने शिष्य कृष्णा से गुरु दक्षिणा में उनके पुत्र को ज़िंदा करने का कहा , तो कृष्णा ने वो भी कर दिया। 


कृष्णा ने जब बचपन जिया तो ऐसा की आज भी छोटे बच्चे को हम कान्हा कहकर बुलाते है , जवानी जी तो ऐसी की जब किसी प्रेम में पड़े प्रेमी को देखते है तो कहते है बड़ा कन्हिया बना फिरता है , प्रेम किया तो ऐसा की 16108 गोपियों में से किसी एक को भी अधूरा महसूस नहीं हुआ , युद्ध किया ( करवाया ) तो ऐसा 5 लोगो को अनंत सेना के सामने जीता दिया और ज्ञान दिया तो गीता जैसा जो आज भी और कालकालान्तार तक हर मनुष्य की हर परिस्थिति में साथ देने में समर्थ है। 

कृष्णा से इस पृथ्वी के हर मनुष्य का अपना एक रिश्ता है , कोई उन्हें अपना गुरु मानता  है , कोई मित्र , कोई पिता ,कोई ईश्वर तो कुछ महिलाएँ तो रक्षाबंधन पे लडू गोपाल कहकर उन्हें राखी भी बाँधती  है , लेकिन एक बात हर मनुष्य में समान है वो ये की हम सब में एक समानमात्रा में कृष्णा स्थित है जो उस मात्रा को बढ़ाएगा वो सफलता पायेगा और सिर्फ भौतिकवाद में ही नहीं आध्यात्मिक जीवन में भी आगे बढेगा । कल जन्माष्टमी है , कृष्णा का जन्मदिन आइये हम इस दिन संकल्प करे की प्रतिदिन कोई एक कृत्य ऐसा करेंगे जो ये प्रमाण दे की हमारे अंदर कृष्णा स्थित है। 

आप सभी को जन्माष्टमी की शुभकामनाये। 

 श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा । 

धन्यवाद 
तनोज दाधीच 

परिशिष्ट भाग / पोस्टस्क्रिप्ट - ये ऊपर की बाते तो ठीक है लेक़ीन अगर सिर्फ कोई एक मनुष्य 16108 गोपियों को अकेला संभाल 
सकता है तो उसे मेरा तो नमन है :) 

Friday, 3 June 2016

" स्थिरता "

" स्थिरता "

स्थिर कहना जितना आसान है , होना उतना ही मुश्किल। 
दिन भर में सोने के अलावा आप कभी भी स्थिर नहीं होते , एक जगह नहीं रुकते ,
दिनचर्या की भागदौड़ हो या सारा काम करके घर लौटने के बाद का समय आप सोचते है की आप एक जगह 
बैठे है कुछ नहीं कर रहे , लेकिन आप निरन्तर कुछ ना कुछ कर रहे होते है , कभी गौर करके देखिएगा। 

मैं दिमाग ,  मन , विचार उनकी तो बात ही नहीं कर रहा हूँ , वो तो ( बड़ी ) बात है ,
मैं तो आपके शरीर की बात कर रहा हूँ जिसके बारे में आपको मुगालता है की उसे आप चला रहे है ,
रात में भी  आपको नींद नहीं आती , आप हाथ-पैर हिलाते रहते है , करवट बदलते रहते है , लेकिन स्थिर 
नहीं होते , वो तो अचानक कोई नींद की झपकी आपसे आपका निरन्तर हिलना छीन के आपको 
तौफे में स्थिरता दे देती है जिसकी बदौलत आप अगले दिन ऊर्जा से काम करते है ,
अब ज़रा सोचिये नींद में बेहोशी की हालत की स्थिरता आपको इतनी ऊर्जा देती है तो 
होश में कभी आप स्थिर हो गए तो केसा अनुभव होगा। 

एक बार शरीर को स्थिर करने की कोशीश करना कभी ,एकदम स्थिर  , हल्का सा भी ना हिले , और फिर रुकना 
देखना कितनी देर आपका आत्मबल आपको रोक सकता है हिलने से , आप चौंक जायेंगे की कुछ ही सेकंड 
आप रुक पाये , जिस दिन 1  मिनट रुक जायेंगे तो आप कुछ अलग अनुभव करेंगे , इसी तरह समय 
बढ़ाए और शरीर को स्थिर करने की कोशिश करे , ये कृत्य आपके जीवन को ऊर्जा से भर देगा और 
आप अध्भुत महसूस करेंगे । 

©
- तनोज दाधीच  

Thursday, 7 April 2016

" प्रकर्ति का उधार "

क्या आप किसी दुकान पे जाके कोई चीज़ लेते है तो मुफ्त में मिल जाती है ?
क्या मुफ्त में आप किसी के लिए नौकरी करते है ?
मेरा मानना है आपका उत्तर होगा , नहीं , तो जो चीज़ आपको मुफ्त में मिल रही है प्रकर्ति द्वारा उसका आपको 
कुछ मोल नहीं देना चाहिए ?
आपके दिन की शुरुआत जल से होती है , जो की मुफ्त में मिल रहा , आपको लगता है जितना जल आप प्रयोग करते है उतना  
आप बिल दे रहे , लेकिन क्या जल उत्पन्न हो रहा उस पैसे से , या जल बच रहा उस पैसे से , दिन भर सांस लेते है पेड़ों की बदौलत , उसे लौटना तो 
भूल ही जाइए बस में नहीं आपके , जो चाय आप पीते है वो दूध से बनी है , आपको लगता है 500  , 1000 रुपए का बिल दूध का दे दिया बात खत्म , 
क्या वो 1000  गाय तक पहुंच रहे हे किसी माध्यम से , या उसके पालन में 1000  पुरे रूपये लग रहे ?
किसी दिन सूरज कह दे मैं आज नहीं निकलूंगा , या पेड़ कह दे आज ऑक्सीजन नहीं देंगे , 
तो आप कल्पना करे क्या हो जायेगा , जो चीज़ जिस आसानी से मिल रही है उसके प्रति कृतज्ञ होकर अपना कर्तव्य निभाए और उसे 
लौटाए जो उसका हक़ है 
तो आप कहेंगे क्या करे  ?
आप जितना कर सकते है उतना करे , वो भी काफी नहीं होगा लेकिन करे ,
भाव महत्वपूर्ण है , जब आप गाय को देखे , या आसमान को , या जल को , या पेड़ को , या सांस तक भी ले तो याद रखे 
ये सब उधार चल रहा है जो आपको किसी ना किसी युग के किसी ना किसी जन्म में प्रकर्ति को लौटना है , 
और नहीं लौटाया , तो वो खुद ले लेगी ,

अंत में  मेरा आपसे आग्रह है की एक दिन ज़मीन की जगह हवा में चले , और साँस ना ले , और दूध से बनी कोई चीज़ ना खाये या पिए , 
और भोजन ना करे ,और जल न पिए ,  ऐसा अगर आप एक दिन कर दे तो आपको मेरा प्रणाम। 
©
- तनोज दाधीच 

Wednesday, 18 November 2015

शायर भैया और उनकी ग़ज़ल की मुलाकात , ( भाग : 3 )

जिन्होंने पहला और दूसरा भाग नहीं पड़ा ,  पहले वो पड़े ।

ज़िन्दगी में कईं बार ऐसा होता है की कोई वस्तु या वस्तु का रंग तक किसी की याद दिलाता है , जिस चाकू से अपनी कलाई काटने का ग़ज़ल ने तय किया उसका रंग गुलाबी थी , गुलाबी रंग का ही रुमाल एक खत के साथ शायर ने ग़ज़ल को भिजवाया था , उसे शायर की याद आई , बस कलाई काटने ही वाली थी की ये विचार कहीं ब्रह्माण्ड से उड़ के ग़ज़ल के मन में आ गया की शायर पे क्या बीतेगी अगर वो इस दुनिया से चली गयी , और ग़ज़ल ने चाकू नीचे रख दिया आंसू पोछ के नींद के इंतज़ार में बिस्तर पर लेट गयी ,
'आगे की कहानी ग़ज़ल की सहेली की दृष्टि से जो उसे आज शायर भैया से मिलवाने ले जा रही थी '




बहुत दिनों बाद मेरी सहेली को ये मौका और हिम्मत मिली है की वो अपने प्रेमी से आज मिले , मैं बहुत खुश हूँ , आज उसे लेके पार्क जाना है , मैं जल्दी ही काम करके ग़ज़ल के घर जैसे ही पहुंची , तो देखती हूँ घर के बाहर ग़ज़ल के पिता और भाई हाथ में एक कागज़ लिए बहुत गुस्से में है , मैंने इस दृश्य को ऐसे ही नहीं जाने दिया और छुपकर उनकी बाते सुनने की कोशिश की और जो सुना वो बहुत ही दिल दुखाने वाला था ,  उनके हाथ में कुछ और नही बल्कि शायर भैया का खत था , जिसमे आज की मुलाकात की बात थी , ग़ज़ल के पिता बहुत गुस्से में थे , वो ग़ज़ल से मिलके सब पूछना चाह रहे थे , इतना गुस्से में मैंने उन्हें कभी नहीं देखा था , लेकिन इन सबसे ज़्यादा गुस्सा ग़ज़ल के भाई को शायर भैया पे आ रहा था , उसने पिताजी से कहा की आज ग़ज़ल को जाने देते है उसका पीछा करेंगे तभी शायर भैया तक पहुंच पाएंगे , वार्ना उसे ढूंढ़ना मुश्किल होगा , पिताजी अपने गुस्से पे काबू रख कर बेटे की बात से सहमत हो गए और दोनों घर के बाहर छुप कर ग़ज़ल के बाहर जाने की राह देखने लगे , मुझे यकीन हो गया था की आज अगर ये लोग शायर भैया तक पहुंच गए तो उन्हें कहीं मार ही ना डाले , इतने गुस्से में थे दोनों , एक तरफ मेरी सहेली मेरा इंतज़ार कर रही थी, उसके जीवन के सबसे अनमोल पल को जीने के लिए , एक तरफ शायर भैया पार्क में इंतज़ार कर रहे थे अपनी ग़ज़ल को करीब से देख के शेर सुनाने का और एक तरफ मैं थी जो ग़ज़ल के घर के बाहर पहुँचने के बावजूद भी अंदर जाने में असमर्थ थी , ये ग़ज़ल के साथ ही क्यों हुआ , ये खत इन लोगो को कैसे मिला , सब कुछ कैसे बदल गया , इन सारे सवालो के जवाब ढूढ़ने का वक़्त नही था , वक़्त था तो समझदारी से काम लेने का , मैंने अपनी सहेली के सबसे अनमोल दिन के सबसे अनमोल पल की कुर्बानी दी और उसे और शायर भैया को आज के लिए बचा लिया और घर लौट आई ,
अगले ही दिन खबर आई की ग़ज़ल ने मुझे बुलाया है , मैं उसके घर गयी डर डर के , उसे अपना चेहरा कैसे दिखाउंगी , पर मुझे यकीन था वो मेरी बात समझेगी , मैंने उसे सब बताया की कैसे मैं बाहर तक आने के बाद भी अंदर नहीं आ पायी लेकिन उसने जो बताया वो मेरे लिए बहुत आशार्यजनक था , उसने कहा की घरवालो ने उसे बहुत खरी खोटी सुनाई , पिता  ने हाथ तक उठाया लेकिन माँ ने बचा लिया , 2 दिन में उसकी सगाई है और 1 हफ्ते में उसकी शादी ,
पिताजी के किसी दोस्त का बेटा है , अच्छी बैंक की नौकरी है और शहर से बाहर रहता है , 1 हफ्ते में ग़ज़ल शायर भैया के दिल से निकल कर शहर के बाहर किसी और के साथ रहेगी इस विचार ने मेरी आँखों में आंसू भर दिए , ग़ज़ल ने मुझे एक खत दिया और कहा आज तक तुमने हर खत पहुँचने के लिए मुझसे 1 ग़ज़ल सुनी है मेरे शायर की , आज में तुम्हें उनका एक गीत सुना दूंगी लेकिन इस आखरी खत को उन तक पहुँचा दो , मैं मौन होके सब सुन रही थी , ग़ज़ल ने रोते रोते गीत सुनाया जिसमे शायर भैया ने उनके और ग़ज़ल के विवाह के बाद के दिनों का वर्णन किया था , हम दोनों आंसुओं की बारिश में नहा  चुके थे , में उनकी प्रेम कहानी की एक मात्र साक्षी थी कैसे पहली नज़र से अधूरी मुलाकात तक का ये सफर बीता , जब मेरे कदम ग़ज़ल के घर से बाहर की तरफ बड़ रहे थे मैंने अपने आप से एक वादा किया की भले शायर भैया और उनकी ग़ज़ल की शादी ना हो , भले ग़ज़ल शहर से चली जाए , लेकिन इस प्रेम कहानी को में ऐसे ही व्यर्थ नहीं जाने दूंगी , मैं इन दोनों को एक बार मिलवाऊंगी ज़रूर , भले कैसे भी हो ,
ग़ज़ल की सहेली ग़ज़ल का आखरी खत लेके शायर भैया से मिलने पहुँची ,
आगे क्या हुआ जानिये अगले सत्र में ................

इस लेख को देरी से प्रकाशित करने के लिए क्षमा चाहता हूँ ,
- तनोज दाधीच 

Friday, 13 November 2015

हम खो जाये, हम खो जाए .......

ज़ुल्फ़ें हैं  या काली घटा ,
कौन बतलाये ,कौन समझाए , 
उड़के  ये जब हमपे आये ,
हम खो जाये, हम खो जाए ,
भौहें है या आँखों का ताज , 
कौन बतलाये ,कौन समझाए ,
इतरा के जब ये बलखाये ,
हम खो जाये, हम खो जाए ,
ऑंखें है या विशाल महासागर ,
कौन बतलाये ,कौन समझाए ,
डूबने के लिए जब इनमे जाए ,
हम खो जाये, हम खो जाए ,
रूखसार (गाल) है या कपास ( रुई ) कोई ,
कौन बतलाये ,कौन समझाए ,
छूते ही बस ये हो जाए ,
हम खो जाये, हम खो जाए ,
होठ है या है दो गुलाबी पंख ,
कौन बतलाये ,कौन समझाए ,
देख के इन्हें दिल बेहक जाये , 
हम खो जाये, हम खो जाए ,
हाथ इतने गोरे की क्या बताये , 
कौन बतलाये ,कौन समझाए ,
दूध का रंग फीका पड़ जाए ,
हम खो जाये, हम खो जाए ,
पैर इतने अनमोल है आपके , 
कौन बतलाये ,कौन समझाए ,
उनके नीचे मखमल हम लगाये ,
हम खो जाये, हम खो जाए ,
बदन है या ईश्वर का चमत्कार कोई ,
कौन बतलाये ,कौन समझाए ,
देख के ख़ूबसूरती आपकी ,
हम खो जाये, हम खो जाए ,
सोचो आपको और ग़ज़ल हो जाये 
कुछ पल में ये कमाल हो जाए ,
आपसे लेकिन ये राज़ छुपाये  ,
'तनोज' खो जाये , 'तनोज' खो जाये। 

- तनोज दाधीच 

Friday, 6 November 2015

शायर भैया और उनकी ग़ज़ल की मुलाकात , ( भाग : 2 )

जिन्होंने पहला भाग नहीं पड़ा , पहले वो पड़े ।

अक्टूबर का महीना था , इतनी ठण्ड नहीं थी लेकिन फिर भी मैंने वो हरा स्वेटर रात को ही पेटी से निकाल लिया था जिसे पेहेन कर मैं खूबसूरत लगती हूँ , ऐसा मेरी माँ कहती है , कल मेरी उनसे पहली मुलाकात है , अजीब सा डर , अजीब से ख़ुशी, कुछ समझ ना आने वाली हलचल दिल में दौड़ रही थी , रात में जागना लगभग तय था , रात भर ना सोने से मेरी आँखों को तो कुछ नहीं होगा , जो कहना है नहीं कह पायी तो , सामना नहीं कर पायी तो , ये सवाल जिनके कोई जवाब न थे मुझे और बेचैन कर रहे थे , एक खत में उन्होंने मुझे अपनी ' ग़ज़ल ' नाम दिया था , क्या मैं सच में हूँ या बस ऐसे ही कहा उन्होंने , क्या कल सब ठीक होगा मुलाकात में , ये सोचते सोचते सूरज की पहली किरण खिड़की से मेरे ऊपर आई और मैं उठ गयी, खिड़की से देखा तो सूरज की रौशनी आज कुछ ज़्यादा थी , या मुझे लग रही थी , सब अलग क्यों है आज , सब सुहाना , सब सुन्दर , जल्दी जल्दी नहा के घर के सारे काम निपटाने लगी ताकि माँ किसी काम के लिए ना रोक ले , बहुत डर लग रहा था , पहली बार घरवालो से छुप कर कोई कदम अपनी आत्मा और दिल की इज़ाज़त से आगे बड़ा रही थी , सारे काम करके सहेली का इंतज़ार करने लगी जो मुझे घर से बहार लेके जाएगी , सब कुछ त्यार था , मैं कपडे पेहेन के लाखो बार आईने में खुद को सवाँर चुकी थी , शर्मा चुकी थी , ज़ुल्फो को चेहरे पे लाने का ज़िक्र एक खत में हुआ था याद था तो मैं उसी तरह त्यार थी , 5 बज गयी अब तक सहेली नहीं आई , उसका नाम नहीं बताउंगी वरना आप सब उसे भला बुरा कहेंगे , 5-30 हो गए , उसने आज तक कभी देरी नहीं की थी , एक नज़र सहेली को ढूंढ रही थी दरवाज़े पे , एक नज़र में उनका इंतज़ार करता हुआ चेहरा उतर आया था , जिसपे भरोसा था मंज़िल तक ले जाने का उसने रस्ते में साथ छोड़ दिया , मेने अपने चेहरे पे एक आंसू की बून्द को महसूस किया , जो उनके लिए थी , मेरे लिए मैं बहुत बार रो चुकी थी , आज पहली बार किसी और के दर्द पे मुझे रोना आया , मैंने वादा किया था मैं ज़रूर आयुंगी , खत में ये भी लिखा था मुझे ख़ुशी है हम मिल रहे , 6-30 हो गए , अँधेरा सर्दियों में जल्दी हो जाता हा , अब मेरा बाहर जाना नामुमकिन था , सहेली नहीं आई , मैं घर के काम में लग गयी , पिता , भाई , माँ जिनके डर से मुझे लगा था ना जा पाऊँगी , उन्होंने मना नहीं किया , सहेली धोखा दे गयी , क्या मज़बूरी होगी उसकी की वो नहीं आई , खुद से ज़्यादा उसे याद दिलाया था की आज जाना है , फिर भी नहीं आई , भूल गयी ?, या जान कर नहीं आई ? , कोई काम आ गया ?, उसके घर पे कोई रोकता भी नहीं है , ये सब सवालो को पीछे धकेल कर एक बड़ा सवाल मेरे दिल में हर एक पल में 100 बार आ रहा था , वो क्या सोचेंगे , क्या अब मुझसे बात करेंगे , क्या मुझे अभी भी अपनी ग़ज़ल बुलाएँगे , या मुझसे रिश्ता तो नहीं तोड़ देंगे ? मैं खुद को अब आईने में नहीं देख पा रही थी , बहुत रोने के बाद भी दिल हल्का नहीं हुआ , क्या ईश्वर मेरे साथ यही सब करना चाहता था तो मुझे एक पल की भी ख़ुशी क्यों दी , मुलाकात के सपने क्यों दिखाए , क्या सोच रहे होंगे वो मैं उन्हें अब अपना चेहरा नहीं दिखा पाऊँगी , क्या एक इंसान को अपने एक जीवन में एक इन्सान एक बार अच्छे से मिलने का हक़ भी नहीं , यही दस्तूर हे जीवन का , तो मुझे नहीं रहना यहाँ ,ये सोचकर ग़ज़ल रात में 12 बजे जब सब सो रहे थे रसोई घर में गयी और.… आगे क्या हुआ जानिये अगले सत्र में।


धन्यवाद तनोज दाधीच

Tuesday, 3 November 2015

शायर भैया और उनकी ग़ज़ल की मुलाकात , ( भाग : 1 )

बहुत दिनों की " नहीं नहीं " और " कोई देख लेगा तो " के बाद रविवार को यह तय हुआ कि शायर भैया और उनकी ग़ज़ल बुधुवार के दिन सुभाष चन्द्र बोस पार्क में ठीक 5 बजे मिलेंगे। इसके बाद सोमवार और मंगलवार नामक २ सदिया शायर को गुज़ारनी थी, मदद के लिए काफी चीज़े थी जैसे तन्हाई , कलम , ख़ामोशी , राते।  बुधवार सुबह बिना किसी कुकड़ू कु  या अलार्म के शायर 5 बजे उठ गए , उसके बाद 3 रुपए ढूंढ के शैम्पू लेने छोटू को भेझा , नहाने में रोज़ से करीब दुगना वक़्त लगा ,कपड़े सबसे अच्छे पहनने के लिए कुछ ऐसे दोस्तों से बात करनी पड़ी जिनको देखते भी न थे, करनी ही पड़ी लेकिन , पहली मुलाक़ात जो थी , इससे पहले तो बस चिठिया या नज़रे ही सहारा थी। ये व्याख्या इन्ही दिनों का है जब फेसबुक पे ही सारी बाते हो जाती है फिर व्हाट्सप्प पर चित्र भझे जाते है , और मुलाकात में सीधे … , लेकिन  अपने शायर भैया और उनकी ग़ज़ल इस दौर से काफी पीछे छूट गये थे शहर में रहने के बावजूद भी , खेर  पार्क में समय अनुसार 4 बजे पहुंच कर शायर जी ने अभ्यास करना शुरू कर दिया की कैसे दिल की बात बिना डरे होठो पे आ जाये , जो इत्र लगा कर आये थे उसका असर कुछ ही मिनटों में गायब हो गया , और शायर को पसीना आने लगा, इतना डर तो दसवी बोर्ड में फ़ैल होकर माताजी से भी नहीं लगा था , समय धीरे धीरे निकल रहा था, निकल ही गया उसे कौन रोक सकता है , शायर अपने शेर के साथ गुलाब का फूल लिए तैयार था , एक नज़र ग़ज़ल को ढूंढ रही थी , दूसरी कोई देख तो नहीं रहा इस्पे नज़र रखी थी , 5 बजे शायर जी का दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था , बस इसी पल के लिए जीवन जीया  था , बस यही आखरी तम्मना , 5:05 हो गये , 5:10  , 5 :15 शायर हर गली पे नज़र रखे हुआ था , एक आहट से चौंक जाता , कहीं बार कल्पना में उसे देख लिया आते हुए , लेकिन हक़ीक़त कुछ और थी , 5:30 हो गए , अब चेहरे का रंग धीरे धीरे हवाओ में उड़ रहा था , बार बार पुरानी घडी देर से चलने का झूठा दिलासा भी अब नहीं काम कर रहा था , 6 बज गए , ग़ज़ल नहीं आई , 7 ,8 ,9 रात हो गयी , एक अलग अनुभव हुआ आज , आंसू आना चाहते थे , शायर रोना चाहता था , क्यों ,कैसे, ऐसे सवाल दिमाग और दिल दोनों पे भयंकर असर कर रहे थे , घर  आते ही माँ ने पूछा कहाँ गया था , कुछ बिना बोले छत पे जाके खूब रोने के बाद अपनी आत्मा से कईं बार पूछा , आखिर क्यों नहीं आई , ऐसा क्यों किया , बेवफा भी नहीं कह सकते क्युकी कोई मज़बूरी भी हो सकती है , भाई ने रोक लिया हो , पिता ने माना कर दिया हो , ऐसा क्यों हुआ लेकिन , ग़ज़ल की कोई मज़बूरी होगी या वो आना नही चाहती थी , उसके दिल में कोई और तो नहीं , सवालो के तीर सीधे दिल पे वार कर रहे थे , आगे क्या हुआ …

जानिए अगले लेख में।

धन्यवाद

तनोज दाधीच

Monday, 26 October 2015

पहला प्यार

पहला प्यार जो होता है उससे ज़्यादा सरल , मासूम , भोला कुछ नही होता,
आप भले उसके बाद सच्चे प्रेम में पड़ जाए , और सच्चे प्रेम से विवाह भी कर ले लेकिन पहला प्यार आपको आजीवन याद रहेगा ,
उसके साथ बीती हुई हर घटना , हर पल को आप भूलना चाहे तो भी नामुमकीन है,

उसके पीछे का कारण ये हे की अधिकतम तौर पे पहला प्यार 10 - 18  वर्ष की उम्र में होता है,
और ये वो उम्र होती है जब इंसान सबसे ज्यादा भोला होता है ,
उसे सही गलत की समझ नहीं होती इसलिए कोई एक चेहरा
जब उसे पसंद आ जाता है तो हर चेहरे में उस चेहरे की छवि ही नज़र आती है

पाठशाला में पड़ते हुए हो , किसी मामा चाचा की शादी में हो , या मोहल्ले के किसी चेहरे से,
ये पहला प्यार आपको जीवन जीने का एक अलग कारण दे देता है ,कुछ बच्चे तो शादी तक की सोच लेते है
यही इसका रस भी है , ना किसी की चिंता ना किसी का डर , बेख़ौफ़ मोहब्बत ,

तब इंसान प्यार सिर्फ आँखों से करता है, शरीर को छूने की आवशयकता  ही नहीं पड़ती , पड़ती भी है तो हाथो में हाथ ही काफी होता है ,

पुराने ज़माने की बात नहीं है , हर सदी में जब किसी को पहला प्यार होगा तो उसे वैसा ही महसूस होगा जैसे कुछ सालो पहले किसी और हो हुआ होगा ,

आज कल की जो नयी पीढ़ी है वो प्यार के मायने भूल गयी है , शरीर की काया से शुरू होने वाला प्रेम वही खत्म हो जाता है,
वहीँ पहला प्यार आत्मा से शुरू होता है जो घरवालो की डाट पे खत्म हो जाता है, लेकिन हमेशा के लिए आत्मा में बस जाता है,

उस प्यार में भोलापन होता है , साथ रहने की इच्छा होती है , बस उसे देखते रहने का मन होता है , हाथ में हाथ डाल कर चलने का मन होता है , पूरी ज़िन्दगी के बारे में संग संग सोचने का मन होता है ,
सबकी नज़रो से बच कर नज़र मिलाने का मन होता है ,

वो लोग बहुत खुशकिस्मत होते है जिनका विवाह उनके पहले प्यार से होता है ,



एक शेर से अंत करना चाहूँगा ,


इसके आगे 'तनोज' हर शख्स झुक जाता है ,
पहला प्यार कहाँ भूलने से , भूला जाता है.…

- तनोज दाधीच