जिन्होंने पहला और दूसरा भाग नहीं पड़ा , पहले वो पड़े ।
ज़िन्दगी में कईं बार ऐसा होता है की कोई वस्तु या वस्तु का रंग तक किसी की याद दिलाता है , जिस चाकू से अपनी कलाई काटने का ग़ज़ल ने तय किया उसका रंग गुलाबी थी , गुलाबी रंग का ही रुमाल एक खत के साथ शायर ने ग़ज़ल को भिजवाया था , उसे शायर की याद आई , बस कलाई काटने ही वाली थी की ये विचार कहीं ब्रह्माण्ड से उड़ के ग़ज़ल के मन में आ गया की शायर पे क्या बीतेगी अगर वो इस दुनिया से चली गयी , और ग़ज़ल ने चाकू नीचे रख दिया आंसू पोछ के नींद के इंतज़ार में बिस्तर पर लेट गयी ,
'आगे की कहानी ग़ज़ल की सहेली की दृष्टि से जो उसे आज शायर भैया से मिलवाने ले जा रही थी '
बहुत दिनों बाद मेरी सहेली को ये मौका और हिम्मत मिली है की वो अपने प्रेमी से आज मिले , मैं बहुत खुश हूँ , आज उसे लेके पार्क जाना है , मैं जल्दी ही काम करके ग़ज़ल के घर जैसे ही पहुंची , तो देखती हूँ घर के बाहर ग़ज़ल के पिता और भाई हाथ में एक कागज़ लिए बहुत गुस्से में है , मैंने इस दृश्य को ऐसे ही नहीं जाने दिया और छुपकर उनकी बाते सुनने की कोशिश की और जो सुना वो बहुत ही दिल दुखाने वाला था , उनके हाथ में कुछ और नही बल्कि शायर भैया का खत था , जिसमे आज की मुलाकात की बात थी , ग़ज़ल के पिता बहुत गुस्से में थे , वो ग़ज़ल से मिलके सब पूछना चाह रहे थे , इतना गुस्से में मैंने उन्हें कभी नहीं देखा था , लेकिन इन सबसे ज़्यादा गुस्सा ग़ज़ल के भाई को शायर भैया पे आ रहा था , उसने पिताजी से कहा की आज ग़ज़ल को जाने देते है उसका पीछा करेंगे तभी शायर भैया तक पहुंच पाएंगे , वार्ना उसे ढूंढ़ना मुश्किल होगा , पिताजी अपने गुस्से पे काबू रख कर बेटे की बात से सहमत हो गए और दोनों घर के बाहर छुप कर ग़ज़ल के बाहर जाने की राह देखने लगे , मुझे यकीन हो गया था की आज अगर ये लोग शायर भैया तक पहुंच गए तो उन्हें कहीं मार ही ना डाले , इतने गुस्से में थे दोनों , एक तरफ मेरी सहेली मेरा इंतज़ार कर रही थी, उसके जीवन के सबसे अनमोल पल को जीने के लिए , एक तरफ शायर भैया पार्क में इंतज़ार कर रहे थे अपनी ग़ज़ल को करीब से देख के शेर सुनाने का और एक तरफ मैं थी जो ग़ज़ल के घर के बाहर पहुँचने के बावजूद भी अंदर जाने में असमर्थ थी , ये ग़ज़ल के साथ ही क्यों हुआ , ये खत इन लोगो को कैसे मिला , सब कुछ कैसे बदल गया , इन सारे सवालो के जवाब ढूढ़ने का वक़्त नही था , वक़्त था तो समझदारी से काम लेने का , मैंने अपनी सहेली के सबसे अनमोल दिन के सबसे अनमोल पल की कुर्बानी दी और उसे और शायर भैया को आज के लिए बचा लिया और घर लौट आई ,
अगले ही दिन खबर आई की ग़ज़ल ने मुझे बुलाया है , मैं उसके घर गयी डर डर के , उसे अपना चेहरा कैसे दिखाउंगी , पर मुझे यकीन था वो मेरी बात समझेगी , मैंने उसे सब बताया की कैसे मैं बाहर तक आने के बाद भी अंदर नहीं आ पायी लेकिन उसने जो बताया वो मेरे लिए बहुत आशार्यजनक था , उसने कहा की घरवालो ने उसे बहुत खरी खोटी सुनाई , पिता ने हाथ तक उठाया लेकिन माँ ने बचा लिया , 2 दिन में उसकी सगाई है और 1 हफ्ते में उसकी शादी ,
पिताजी के किसी दोस्त का बेटा है , अच्छी बैंक की नौकरी है और शहर से बाहर रहता है , 1 हफ्ते में ग़ज़ल शायर भैया के दिल से निकल कर शहर के बाहर किसी और के साथ रहेगी इस विचार ने मेरी आँखों में आंसू भर दिए , ग़ज़ल ने मुझे एक खत दिया और कहा आज तक तुमने हर खत पहुँचने के लिए मुझसे 1 ग़ज़ल सुनी है मेरे शायर की , आज में तुम्हें उनका एक गीत सुना दूंगी लेकिन इस आखरी खत को उन तक पहुँचा दो , मैं मौन होके सब सुन रही थी , ग़ज़ल ने रोते रोते गीत सुनाया जिसमे शायर भैया ने उनके और ग़ज़ल के विवाह के बाद के दिनों का वर्णन किया था , हम दोनों आंसुओं की बारिश में नहा चुके थे , में उनकी प्रेम कहानी की एक मात्र साक्षी थी कैसे पहली नज़र से अधूरी मुलाकात तक का ये सफर बीता , जब मेरे कदम ग़ज़ल के घर से बाहर की तरफ बड़ रहे थे मैंने अपने आप से एक वादा किया की भले शायर भैया और उनकी ग़ज़ल की शादी ना हो , भले ग़ज़ल शहर से चली जाए , लेकिन इस प्रेम कहानी को में ऐसे ही व्यर्थ नहीं जाने दूंगी , मैं इन दोनों को एक बार मिलवाऊंगी ज़रूर , भले कैसे भी हो ,
ग़ज़ल की सहेली ग़ज़ल का आखरी खत लेके शायर भैया से मिलने पहुँची ,
आगे क्या हुआ जानिये अगले सत्र में ................
इस लेख को देरी से प्रकाशित करने के लिए क्षमा चाहता हूँ ,
- तनोज दाधीच
ज़िन्दगी में कईं बार ऐसा होता है की कोई वस्तु या वस्तु का रंग तक किसी की याद दिलाता है , जिस चाकू से अपनी कलाई काटने का ग़ज़ल ने तय किया उसका रंग गुलाबी थी , गुलाबी रंग का ही रुमाल एक खत के साथ शायर ने ग़ज़ल को भिजवाया था , उसे शायर की याद आई , बस कलाई काटने ही वाली थी की ये विचार कहीं ब्रह्माण्ड से उड़ के ग़ज़ल के मन में आ गया की शायर पे क्या बीतेगी अगर वो इस दुनिया से चली गयी , और ग़ज़ल ने चाकू नीचे रख दिया आंसू पोछ के नींद के इंतज़ार में बिस्तर पर लेट गयी ,
'आगे की कहानी ग़ज़ल की सहेली की दृष्टि से जो उसे आज शायर भैया से मिलवाने ले जा रही थी '
बहुत दिनों बाद मेरी सहेली को ये मौका और हिम्मत मिली है की वो अपने प्रेमी से आज मिले , मैं बहुत खुश हूँ , आज उसे लेके पार्क जाना है , मैं जल्दी ही काम करके ग़ज़ल के घर जैसे ही पहुंची , तो देखती हूँ घर के बाहर ग़ज़ल के पिता और भाई हाथ में एक कागज़ लिए बहुत गुस्से में है , मैंने इस दृश्य को ऐसे ही नहीं जाने दिया और छुपकर उनकी बाते सुनने की कोशिश की और जो सुना वो बहुत ही दिल दुखाने वाला था , उनके हाथ में कुछ और नही बल्कि शायर भैया का खत था , जिसमे आज की मुलाकात की बात थी , ग़ज़ल के पिता बहुत गुस्से में थे , वो ग़ज़ल से मिलके सब पूछना चाह रहे थे , इतना गुस्से में मैंने उन्हें कभी नहीं देखा था , लेकिन इन सबसे ज़्यादा गुस्सा ग़ज़ल के भाई को शायर भैया पे आ रहा था , उसने पिताजी से कहा की आज ग़ज़ल को जाने देते है उसका पीछा करेंगे तभी शायर भैया तक पहुंच पाएंगे , वार्ना उसे ढूंढ़ना मुश्किल होगा , पिताजी अपने गुस्से पे काबू रख कर बेटे की बात से सहमत हो गए और दोनों घर के बाहर छुप कर ग़ज़ल के बाहर जाने की राह देखने लगे , मुझे यकीन हो गया था की आज अगर ये लोग शायर भैया तक पहुंच गए तो उन्हें कहीं मार ही ना डाले , इतने गुस्से में थे दोनों , एक तरफ मेरी सहेली मेरा इंतज़ार कर रही थी, उसके जीवन के सबसे अनमोल पल को जीने के लिए , एक तरफ शायर भैया पार्क में इंतज़ार कर रहे थे अपनी ग़ज़ल को करीब से देख के शेर सुनाने का और एक तरफ मैं थी जो ग़ज़ल के घर के बाहर पहुँचने के बावजूद भी अंदर जाने में असमर्थ थी , ये ग़ज़ल के साथ ही क्यों हुआ , ये खत इन लोगो को कैसे मिला , सब कुछ कैसे बदल गया , इन सारे सवालो के जवाब ढूढ़ने का वक़्त नही था , वक़्त था तो समझदारी से काम लेने का , मैंने अपनी सहेली के सबसे अनमोल दिन के सबसे अनमोल पल की कुर्बानी दी और उसे और शायर भैया को आज के लिए बचा लिया और घर लौट आई ,
अगले ही दिन खबर आई की ग़ज़ल ने मुझे बुलाया है , मैं उसके घर गयी डर डर के , उसे अपना चेहरा कैसे दिखाउंगी , पर मुझे यकीन था वो मेरी बात समझेगी , मैंने उसे सब बताया की कैसे मैं बाहर तक आने के बाद भी अंदर नहीं आ पायी लेकिन उसने जो बताया वो मेरे लिए बहुत आशार्यजनक था , उसने कहा की घरवालो ने उसे बहुत खरी खोटी सुनाई , पिता ने हाथ तक उठाया लेकिन माँ ने बचा लिया , 2 दिन में उसकी सगाई है और 1 हफ्ते में उसकी शादी ,
पिताजी के किसी दोस्त का बेटा है , अच्छी बैंक की नौकरी है और शहर से बाहर रहता है , 1 हफ्ते में ग़ज़ल शायर भैया के दिल से निकल कर शहर के बाहर किसी और के साथ रहेगी इस विचार ने मेरी आँखों में आंसू भर दिए , ग़ज़ल ने मुझे एक खत दिया और कहा आज तक तुमने हर खत पहुँचने के लिए मुझसे 1 ग़ज़ल सुनी है मेरे शायर की , आज में तुम्हें उनका एक गीत सुना दूंगी लेकिन इस आखरी खत को उन तक पहुँचा दो , मैं मौन होके सब सुन रही थी , ग़ज़ल ने रोते रोते गीत सुनाया जिसमे शायर भैया ने उनके और ग़ज़ल के विवाह के बाद के दिनों का वर्णन किया था , हम दोनों आंसुओं की बारिश में नहा चुके थे , में उनकी प्रेम कहानी की एक मात्र साक्षी थी कैसे पहली नज़र से अधूरी मुलाकात तक का ये सफर बीता , जब मेरे कदम ग़ज़ल के घर से बाहर की तरफ बड़ रहे थे मैंने अपने आप से एक वादा किया की भले शायर भैया और उनकी ग़ज़ल की शादी ना हो , भले ग़ज़ल शहर से चली जाए , लेकिन इस प्रेम कहानी को में ऐसे ही व्यर्थ नहीं जाने दूंगी , मैं इन दोनों को एक बार मिलवाऊंगी ज़रूर , भले कैसे भी हो ,
ग़ज़ल की सहेली ग़ज़ल का आखरी खत लेके शायर भैया से मिलने पहुँची ,
आगे क्या हुआ जानिये अगले सत्र में ................
इस लेख को देरी से प्रकाशित करने के लिए क्षमा चाहता हूँ ,
- तनोज दाधीच